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ग़ज़ल
दोस्ती का हश्र देखा तो खुला हम पर 'ज़फ़र'
हश्र में खुल कर करेंगे दुश्मनी प्यारों के साथ
यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
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ग़ज़ल
ब-हर-सूरत मोहब्बत का यही अंजाम देखा है
कि जाँ दे कर भी इंसाँ को यहाँ नाकाम देखा है
सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-हस्ती किसी मरहम से भी अच्छा न हुआ
किसी सूरत से इलाज-ए-ग़म-ए-फ़र्दा न हुआ
सय्यद मुज़फ़्फ़र अहमद ज़िया
ग़ज़ल
आह-ओ-फ़रियाद से इक हश्र बपा है हर सम्त
ख़ूँ-फिशाँ ख़ंजर-ए-ज़रदार रहेगा कब तक
प्रेम नारायण सक्सेना राज़
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर नग़्मा-ए-हस्ती भला मालूम होता है
मगर हर साँस आवाज़-ए-शिकस्त-ए-साज़ होती है